याद
कासनी दुपट्टटे को उँगलियों में लपेटती मैं खुद से ही बाते कर रही हूँ।चाँद रात है और खिड़की पर लटकता मेरा मन। तुम आओ और इसे उतार लाओ तन की खूँटी से। बैठ कर बनायें हम कहकहाँ के निशान समुद्र के खारे पानी से एक दूसरे के दिल पर। लहरों का रेला पास और पास आ रहा है। घुलते जा रहे हैं तेरे इश्क के रंग फिजाओं में।
स्वप्न सी सलौनी
चाँदनी सी निर्मल
रात सी रूपहली
तारों सी झिलमिल
बस तुम्हारी याद
डूबते थे तारे
आकाश में मद्धम- मद्धम
छेड़ रहे थे झरने
कल-कल की सरगम
उन सबसे कुछ अलग सी
अलसाई चुलबुली सी
एक तुम्हारी याद
रंगीन तितलियाँ भी
आ बैठी सिमट के
जब गूँज उठा तुम्हारी
यादों का तराना
बंद आँखों की झिरी में
छिपे हुए थे तुम ही
ये नींद तो बस
थी एक बहाना
फूलों की खुशबुओं सी
रंगीन तितलियों सी
बस तुम्हारी याद।
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