कुछ अनकही

 काली घटायें घिर घिर कर आ रही हैं। आँखों से बहता काजल गालों पर निशान बनाता बहता जा रहा है। काश तुम आते और खिड़की पर टँगा मेरा बेकल मन ले आते। किस देस बस गये तुम।जब आओगे मेरी  आँखों को ले आना उस राह से जो तक रही तुम्हारे आने का रास्ता। ओ मेरे प्रिय भीगी हूँ तुम्हारी यादों की बारिश में

जीवन की सूनी बगिया में

पतझड़ के सूखे मौसम में

कोई कली जो खिल जाये

हरियाली कहीं जो दिख जाये

एक हवा पूरब से चलती है

और पश्चिम से टकराती है

क्या जाने अंजान पवन

एक विरहन को वो जलाती है

सुबह की लाली में खिलकर

जब फूल सदा मुस्कुराते हैं

तब हम जैसे नादान तेरी 

यादों के दीप जलाते हैं। 

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